भिक्खु संघ ने किया ग्राम माहुद स्थित प्रज्ञा बुद्ध विहार का जीर्णोद्धार का भूमि पूजन।

जिला मोहला मानपुर अंबागढ़ चौकी में

भिक्खु संघ ने किया ग्राम माहुद मचांदुर स्थित प्रज्ञा बुद्ध विहार का जीर्णोद्धार का भूमि पूजन।

 

 

 

शिक्षाविदों को जन्म देने वाली धरती में सन् 1957 में निर्मित प्रज्ञा बुद्ध विहार को सवारने सामने आये दानदाता।

 

इतिहास के पन्नों में दर्ज है माहुद – मचांदुर … संविधान निर्माता बोधिसत्व डाँ. भीमराव आम्बेडकर ने नागों की भूमि नागपुर में बौद्ध धम्म ग्रहण करने की घोषणा करते ही आग की रफ़्तार की भाँति सम्पूर्ण भारत वर्ष में यह बात फैल गई और लोग नागपुर की ओर कुच करने लगे उस समय के (सी.पी. बैरार) वर्तमान छत्तीसगढ़ के माहुद – मचांदुर से भी लोग बौद्ध धम्म स्वीकारने के लिए गये वहा से आते ही 7 माह के पश्चाताप माहुद के समाज ने दिनांक 21 मई 1957 को बौद्ध धम्म की दीक्षा का कार्यक्रम आयोजित कर बौद्ध हुए एवं प्रज्ञा बुद्ध विहार निर्माण कर बौद्ध धम्म का प्रचार एवं प्रसार का केन्द्र बना दिया। उसी ऐतिहासिक क्रांति भूमि ने एक बौद्ध भिक्खु को जन्म दिया, एम. एल. बोरकर जी के ह्रदय को परिवर्तित किया, 85 वर्ष के एम. एल. बोरकर जी ने अपने सांसारिक जीवन एवं नाम को त्यागकर बौद्ध भिक्खु बन गये 15 – 16 वर्षो से भिक्खु जीवन व्यतीत कर चरथं भिक्खवे चारिकं बहुजन हिताय बहुजन सुखाय के उद्देश्य के पूर्ति के लिए विचरण कर रहे है। आज वे भन्ते महेन्द्र थेरो के नाम से विख्यात है।

 

एक और इतिहास के पन्नों में दर्ज है माहुद – मचांदुर एक समय था जब शिक्षा के क्षेत्र में माहुद की धरती शिक्षाविदों को जन्म दे रही थी उस समय के लोग उच्च पदों से लेकर व्यपार के क्षेत्रों में सम्पूर्ण भारत वर्ष में फैल गये जब उन्हें पता चला कि शिक्षाविदों को जन्म देने वाली धरती उनके (पैतृक ग्राम) में सन् 1957 में बने बुद्ध विहार समय के बितते जीर्ण – शीर्ण अवस्था में पहुंचे उससे पहले ही अपने बच्चन के आधात्मिक धरोहर को बचाने सामने आये भारत वर्ष में फैले दानदाता।

 

कार्यक्रम के मुख्य उपदेशक भिक्खु धम्मतप जी अध्यक्ष मेत्ता संघ जिला राजनांदगांव ने अपने उपदेश में कहे की आप खुद अपने जीवन में सोचे वास्तविक में जो पीड़ा हो रही है क्या उसका कारण उसके जीवन में उत्पन्न लोभ तो नहीं, क्या द्वेष तो नहीं है, क्या मोह तो नहीं है, इस प्रकार तृष्णाओं के कारण दुःखों में पड़े रहते है। दान पारमिता करते वक्त तीन बातों का होना आवश्यक होता है पहला दान देने की चेतना (इच्छा) का होना, दुसरा दान की वस्तु का होना, तीसरा दान लेने वाले का होना। इन तीन बातो के होने से ही आपकी दान पारमिता हो सकती है। अगर आपके पास सब कुछ होते हुए भी दान करने की चेतना इच्छा न हो, दान की इच्छा होते हुए भी यदि देने के लिए कोई वस्तु न हो, यदि दान करने की इच्छा भी हो दान देने के लिए वस्तु भी है किन्तु दान ग्रहण करने वाला न हो तो भी आपकी दान पारमिता नहीं हो सकती है। इस तारत्म्य में भन्ते जी आगे कहते है दान देने वाले के तीन प्रकार होते है एक दान दास होता है, दुसरा दान सहाय होता है, तीसरा दान पति होता है, क्रमशः आप इसे इस प्रकार समझ सकते है जो व्यक्ति स्वयं तो अच्छा खाता है दुसरे को दान देते समय खराब चीजों को दान देता है उसे दान दास कहते है। जो व्यक्ति स्वयं जैसा खाता है दुसरे को भी वैसा ही देता है उसे दान सहाय कहते है। जो व्यक्ति जैसा भी जीवन यापन करता हो किन्तु दान देते समय यथा संभव उत्कृष्ट वस्तु दान करता है उसे दान पति कहते है। इसी तारतम्य में भदन्त महेन्द्र थेरो जी एवं भदन्त धम्मपाल जी तथा जे. पी. गोडबोले नागपुर, हेमंत कांडे दल्लीराजहरा, एम. बी. मिलिंद, कन्हैयालाल खोब्रागड़े ने अपना उद्बोधन दिया। इस अवसर पर राजनांदगांव से संदीप कोल्हटकर, विप्लव साहू खैरागढ़, कुनाल बोरकर, राजनांदगांव, संजय हुमने राजनांदगांव, आयु. सुनिता ईलमकर राजनांदगांव, आयु. हर्षिता गजभिये राजनांदगांव उपस्थित थे।

 

कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए अरविंद मिलिंद अध्यक्ष जीर्णोद्धार समितियां माहुद मचांदुर, सहयोगी अरविंद बांबेसर, आलोक मिलिंद, विनोद रामटेके, गौतम दामले, संतोष सहारे, नरेश दामले, प्रज्ञा बुद्ध विहार महिला मंडल अध्यक्ष आयु. सपना मेश्राम, राजनांदगांव से आयु. नंदा मेश्राम, सीमा बांबेसर , समस्त उपासक एवं उपासिकाये तथा कार्यक्रम का संचालन सौरभ मिलिंद ने किया।

 

इस अवसर पर सैकड़ों की संख्या में उपासक एवं उपासिकाएँ उपस्थित होकर धम्म श्रवण किये।

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